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मैं... उनके गुल्लक की निर्मम डकैत

 कभी यूँ हुआ है? दिनचर्या का कोई साधारण सा कार्य करते हुए  एकाएक किसी याद की महक साँस में भर गयी हो और अतीत, वर्तमान, भविष्य ...  सब एक "क्षण"... एक जीवित क्षण के रूप में अनुभूत हो गया हो! तार पर कपड़े सुखाते हुए उन्हें झटकना और हल्की उछाल से तार पर पसार देना ... इस प्रक्रिया में भीगे कपड़े से पानी की एक ख़ुशबू आती है। पानी की ख़ुशबू हर शहर की अलग अलग होती है... झटक कर कपड़े तार पर डालने की यांत्रिकी हर हाथ की कुछ भिन्न होती है । मगर कभी-किसी विशेष क्षण में ...  बिहार,  छपरा में होते हुए बनारस की, घाट किनारे वाले पानी की, नानी के घर की ख़ुशबू बिना पूछे, बिना बताए, बिना किसी वाजिब वजह के चली आती है। हाथ की यांत्रिकी अनैच्छिक रूप से नानी ... और नानी से होते हुए कुछ माँ की सी हो जाती है। उस एक क्षण में मेरी चेतना नानी और माँ दोनो ही बन जाती है। किसी रहस्यमयी शक्ति से अभिभूत ... मैं उस विशेष क्षण में एक साथ काशी के बांसफाटक वाली गली से नीची ब्रह्मपुरी वाले मकान की खड़ी सीढ़ियाँ चढ़ छत पर भकुआई आँखों से नानी के हाथों पर उभर आयी नीली नसों का खिंचाव महसूस कर रही हूँ और उसी क्षण में