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कहानी....सच... और चाँद का बौना पेड़

  एक दिन मैं अपनी कहानी लिखूँगी, जब हमारे बीच की सारी बातें अपने किनारे पर निढाल होकर आकाश ताकती होंगी। जब तुम एक भीनी चुप ओढ़े मेरे पास होगे, सवालों- जवाबों से रिक्त। जब तुम्हें कुछ नहीं जानना होगा, जब मुझे कुछ नहीं बताना होगा, तब मैं अपनी कहानी लिखूँगी।      मेरी कहानी... जिसमें काई लगे बड़े बड़े पत्थर हैं, कुछ ढह चुका-कुछ बाक़ी एक गलियारा है, जिसके अंतिम छोर पर बिना कुण्डी वाला बाथरूम है, गलियारे के दूसरे सिरे पर एक कमरा है चूल्हे, किताबों और सपनों से ठसमठस भरा, रात के अंधेरे से जूझती एक मोमबत्ती दरवाज़े की चौखट से थोड़ा बचा कर रखी गई है। कमरा उमस और उदासी से भरा है, पुरानी पीली मच्छरदानी के भीतर एक माँ है, एक बेटी है, और एक क्षण है... उस क्षण में क्या घटा ये कहानी में बताऊँगी ...      एक जलते-बुझते तारों वाली छत भी है,  जब आधी रात को बारिश की थपकी चेहरे पर पड़ती है, तब उस पर  निढाल शरीर आनन-फ़ानन में गद्दा-चादर समेट कर नीचे को भागते हैं।        एक बौना सा पेड़ भी है जिसपर चाँद फलता है, मगर छूने को जब भी हाथ बढ़ाओ, हाथ जल जाते हैं। जितनी भी जड़ें काट दो, फिर-फिर पनप जाता है। न पेड़