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Showing posts from March 26, 2023

जो थोड़ी भीग जाती है...

  वो जो नीचे की रोटी है जो थोड़ी भीग जाती है जिसे कोई नहीं खाता वो रोटी मां खाती है।                      कल्पना में आ ही नहीं पाया वो ठौर जहां सर टिका कर सारे आंसू उड़ेल देने थे। खूब थक जाने बाद जिधर को देखना था.. कि उठो...  बस हिम्मत करके वहां तक पहुंच जाओ .. फिर सब ठीक हो जाएगा... वो जगह नहीं रही , जब जीवन के समीकरण से मां को हटा कर सोचना चाहा.. जीवन ही नज़र नहीं आया। वो जो उन्माद और खुमारी थी.. जिसमें ज़रा अकड़ कर उसकी भावनाओं को लतेड़ दिया था, वो खुमारी थी... सो उतर गई... अकड़ कंठ के कुछ और भीतर एक गांठ में बदलती चली गई...       मैं छत के दूसरे छोर से मां को धूप में बैठ कर बथुआ ( साग) चुनते देख रही थी। भवें सिकोड़ कर साग के लच्छे को आंखो के बिल्कुल पास ला कर ध्यान काफ़ी देर तक देखतीं... कुछ रखतीं, कुछ हटातीं.. हटाए हुए में से फिर कुछ रख लेती... फिर जाने क्या सोच कर उसे वापस फेंक देतीं। उनका चश्मा नीचे रह गया था, उनके मांगने के बावजूद न मैं ला कर दे पाई, न बहन, और भाई को तो साग बनाना ही व्यर्थ का उपक्रम ...