तुम्हें लगता है वो तुम्हारे लिए ख़तरा हैं? तुम्हें ठीक लगता है।
कुछ बातें शब्दों तक सीमित नहीं रहतीं। कुछ बातें नसों में उतर जाती हैं, पिघले हुए कांच की तरह। एहसास दिलाती रहती हैं कि सब पहले जैसा नहीं रहा। सब पहले जैसा नहीं हो सकता। कुछ बातें जीवन की गति को बदल देती हैं। ऐसी ही बात थी जिसको मैंने किसी से कहा नहीं, लेकिन सबने सुना, सबने देखा, की मेरी नसों में कोई कांच पिघला हुआ सा दौड़ता है। अब ये सब क्यों कह रही हूं? क्योंकि अब देखती हूं, गंगा घाट पर मुझसे दो सीढ़ियों आगे एक और लड़की बैठी है, उसकी नसों में भी वही कांच बहता है। उसने ऊंचा जूड़ा बांधा है, फोन बैग के ऊपर लापरवाही से रखा है, नदी की ओर देखती हुई शांत बैठी है। बीच- बीच में मुस्कुराती है। उसकी आंखो में दर्द नहीं है। उसी लड़की के सामने से 12-13 साल की बच्ची दौड़ी हुई जाती है, दो और बच्चियों के पीछे। एक आदमी उसे गालियां दे रहा है, उसके जननांगों से संबंधित गालियां, पूर्ण विस्तार में! क्या वो समझती है!! हां, समझती है ! बच्ची के पांव धीमे पड़ते हैं, मुड़ कर देखती है, आदमी उसकी ही और बढ़ रहा है, वो तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ती हुई मेरे सामने क...