Posts

Showing posts from May 19, 2019

तुम्हें लगता है वो तुम्हारे लिए ख़तरा हैं? तुम्हें ठीक लगता है।

कुछ बातें शब्दों तक सीमित नहीं रहतीं। कुछ बातें नसों में उतर जाती हैं, पिघले हुए कांच की तरह। एहसास दिलाती रहती हैं कि सब पहले जैसा नहीं रहा। सब पहले जैसा नहीं हो सकता। कुछ बातें जीवन की गति को बदल देती हैं। ऐसी ही बात थी जिसको मैंने किसी से कहा नहीं, लेकिन सबने सुना, सबने देखा, की मेरी नसों में कोई कांच पिघला हुआ सा दौड़ता है।       अब ये सब क्यों कह रही हूं? क्योंकि अब देखती हूं, गंगा घाट पर मुझसे दो सीढ़ियों आगे एक और लड़की बैठी है, उसकी नसों में भी वही कांच बहता है। उसने ऊंचा जूड़ा बांधा है, फोन बैग के ऊपर लापरवाही से रखा है, नदी की ओर देखती हुई शांत बैठी है। बीच- बीच में मुस्कुराती है। उसकी आंखो में दर्द नहीं है।        उसी लड़की के सामने से 12-13 साल की बच्ची दौड़ी हुई जाती है, दो और बच्चियों के पीछे। एक आदमी उसे गालियां दे रहा है, उसके जननांगों से संबंधित गालियां, पूर्ण विस्तार में! क्या वो समझती है!! हां, समझती है ! बच्ची के पांव धीमे पड़ते हैं, मुड़ कर देखती है, आदमी उसकी ही और बढ़ रहा है, वो तेज़ी से  सीढ़ियां चढ़ती हुई मेरे सामने क...

मेरे घर कोई पिंजरा तो नहीं, थोड़ी छाँव है

           वो डरी हुई थी। मेरा मन नहीं हुआ उससे और कुछ पूछूं। वैसे भी, वो क्या बता देती जो मुझे पहले से पता नहीं था। वो जानना चाहती थी मैं कैसे जी लेती हूँ ? क्या मैं सचमुच खुश हूँ? मुझे क्या कहना चाहिए था ! हालाँकि ये भी सच है कि  मैं उतनी खुश नहीं जितनी फेसबुक पर नज़र आती हूँ , लेकिन ऐसा कुछ त्रास भी नहीं सह रही हूँ जो "अकेली औरत " की अवधारणा के साथ जुड़ा है।  "हर आदमी तुम्हे नोचने दौड़ेगा " (नोचने के स्थान पर सभ्य समाज के पति एक अन्य , अधिक प्रचलित मिलते जुलते शब्द का प्रयोग करते हैं) की धमकी से डरी  हुई तो मैं भी थी। लेकिन ऐसा कुछ अनुभव में नहीं आया कि घूरने या फब्तियां कसने वालों कि संख्या में कोई अप्रत्याशित इजाफा हुआ हो। अकेलापन थोड़ा उदास कर देता है लेकिन "खाने को नहीं दौड़ता "  , और थोड़ी उदासी बेहतर है।          खैर छोड़ो , ये क्या लेकर बैठ गई।  आज तो आधा दिन इसी विश्लेषण में बीता कि 'डैनी' की नियति क्या मारा जाना ही हो सकती थी ? क्या मज़बूत इच्छाशक्ति की महिलाओं को नकारात्मकता की और धकेल देना...