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Showing posts from April 30, 2023

मैं वो नहीं हूं जो तुम्हें नजर आती हूं!

 कुछ ऐसे क्षण होते हैं, जिनमें चेतना बाहर को नहीं, भीतर को झांकती है, चेतना में गुंथा ऐसा क्षण जहां से आपको याद रह जाता है, कि वो, वहां से मैं ,"मैं" हो गया था। वो आपके एक व्यक्ति के रूप में अस्तित्व में आने का क्षण होता है। हर किसी का वो "मैं" उस सांचे से अलग होता है, जो बाहर से हर "तुम " को नजर आ रहा होता है। ये कोई बड़ी अनोखी बात नहीं है... कि तुम वो नहीं हो जो मुझे नजर आते हो... कि मैं वो नहीं हूं जो तुम्हें नजर आती हूं।        मेरी चेतना मुझे हाथ पकड़ कर जहां ले जाती है, मेरे अस्तित्व का, मेरे मैं होने का जहां संज्ञान है... वो बड़ी अज़ीज़ खुशबू है, गंगा की, पुराने बड़े पत्थरों पर हरी काई की, सेकेंड हैंड किताबों के पुराने पन्नों की, लाइब्रेरी की मुहर की, सूती धोती में सींझे हुए पसीने की, ढिबरी में जलते पतंगे की, बनारसी पान की, स्याही वाली कलम और उसकी स्याही में भीगे उंगली के पोरों की, पसीने में घुले आंसुओं की, और बहुत सारी ऐसी बातों की जिनका तुमसे या तुम्हारी दुनिया से कोई संबंध नहीं हो सकता।         मैं वो हर क्षण हूं जो मैंने जिया,...