Posts

Showing posts from May 26, 2019

'हैरी पॉटर ' वाली नोटबुक का 'बुद्धिजीविता ' से कोई आवश्यक विरोध नहीं है

       तुम्हें याद है ? ये कविता पढ़ी थी हमने बचपन में, 'भारत भूषण अग्रवाल' की, "मैं और मेरा पिट्ठू ", और मैंने तभी कहा था तुमसे , ये पिट्ठू बड़ा परेशान  करेगा मुझे ! तुम समझे ही नहीं थे, तुम्हें लगा था मैं समय के साथ एक निश्चित ठोस व्यक्तित्व में विकसित  हो जाउंगी। बोलो हुआ क्या वैसा ? बताओ अब क्या करूँ !       'स्प्लिट पर्सनालिटी ' ?  मुझे नहीं लगता।  मुझे लगता है ऐसा स्वीकार कर लेना सरलीकरण होगा ! मुझे लगता है जब व्यक्ति जटिलताओं में सामंजस्य बिठाने के क्रम में उस स्तर  को प्राप्त कर लेता है जिसे तुम "मैच्योरिटी " कहते हो, तब एकाएक अगर बहुत सरल  सी कोई भावना उससे टकरा जाए तो वो अचकचा जाता है ! समझ नहीं पाता उसे।  भौंचक रह जाता है। शायद क्योंकि एक उम्र के बाद आम के पेड़ों पर लड्डू नहीं फल सकते , सिक्के बो कर पौधे निकलने का इंतज़ार नहीं होता और न ही बादलों से एक बुढ़िया हाथ में हथौड़ी लिए नीचे झांकती है। एक उम्र के बाद टॉम और जेरी में किसी प्रकार की मित्रता  की सम्भावना नहीं रह ज...

जहाँ ये जा रहे हैं न ! वहां अब कोई भगवान् नहीं रहता !

एक राजकुमार था, बहुत सुन्दर ! थोड़ा खोया खोया सा रहता था।  उसे कई सारी बातें समझ में नहीं आती थी।  जैसे लोग खुश क्यों नहीं रह पाते ? जैसे झुर्रियों वाला बुढ़ापा सबकी नियति क्यों है ? जो मिलता है वो खो क्यों जाता है ? चोट क्यों लगती है ? दर्द क्यों होता है ? लोग मूर्तियों के आगे कीर्तन करते हैं, फूल चढ़ाते हैं , कभी - कभी किसी स्वस्थ जानवर की बलि भी चढ़ा डालते हैं ! उन्हें लगता है इससे दुःख दूर हो जाएगा , लेकिन घर पहुंचते पहुंचते ही कोई नया दुःख फिर उन्हें घेर लेता है। उसने सोचा वो इसका हल ढूढ़ेगा ! ये मूर्तियां , मंदिर, कीर्तन , क्या बचकानी बातें हैं !  वो ठोस समाधान चाहता था ! उस समाधान की खोज में निकल गया।  लोग कहते हैं सफल भी हुआ था ! लोगों के पास लौट कर आया भी, कि इनको भी बता दूं , इनका भी दुःख दूर हो जाए !            पता नहीं उसने क्या कहा , पता नहीं लोगों ने क्या सुना ! लेकिन भीड़ इकट्ठी ज़रूर हुई ! भीड़ ने उसकी मूर्तियां बना डालीं , मंदिर गढ़ लिए, कीर्तन करने लगी उसी के आगे , प्रसाद बांटें ! उसे जानवरों का मार...