'हैरी पॉटर ' वाली नोटबुक का 'बुद्धिजीविता ' से कोई आवश्यक विरोध नहीं है
तुम्हें याद है ? ये कविता पढ़ी थी हमने बचपन में, 'भारत भूषण अग्रवाल' की, "मैं और मेरा पिट्ठू ", और मैंने तभी कहा था तुमसे , ये पिट्ठू बड़ा परेशान करेगा मुझे ! तुम समझे ही नहीं थे, तुम्हें लगा था मैं समय के साथ एक निश्चित ठोस व्यक्तित्व में विकसित हो जाउंगी। बोलो हुआ क्या वैसा ? बताओ अब क्या करूँ ! 'स्प्लिट पर्सनालिटी ' ? मुझे नहीं लगता। मुझे लगता है ऐसा स्वीकार कर लेना सरलीकरण होगा ! मुझे लगता है जब व्यक्ति जटिलताओं में सामंजस्य बिठाने के क्रम में उस स्तर को प्राप्त कर लेता है जिसे तुम "मैच्योरिटी " कहते हो, तब एकाएक अगर बहुत सरल सी कोई भावना उससे टकरा जाए तो वो अचकचा जाता है ! समझ नहीं पाता उसे। भौंचक रह जाता है। शायद क्योंकि एक उम्र के बाद आम के पेड़ों पर लड्डू नहीं फल सकते , सिक्के बो कर पौधे निकलने का इंतज़ार नहीं होता और न ही बादलों से एक बुढ़िया हाथ में हथौड़ी लिए नीचे झांकती है। एक उम्र के बाद टॉम और जेरी में किसी प्रकार की मित्रता की सम्भावना नहीं रह ज...