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पुरानी दीवार पर लटका एक बल्ब बल्ब...

 सफेदी खो चुकी एक पुरानी दीवार पर एक मद्धम सा बल्ब लटका था। उसके इर्द गिर्द तीन पतंगे अपनी मस्ती में मंडरा रहे थे। एक छिपकली काफी देर से घात लगाए बैठी थी। एक सरसराहट से उस ओर बढ़ी, फिर जाने क्या सोच कर रुक गई। पहले पतंगे का ध्यान उसकी ओर गया, वह चिल्लाया, "अरे भागो यहां से, वह देखो छिपकली आ रही है"। दूसरे पतंगे ने उस ओर देखा, फिर  भवें तान कर बोला- "हुंह ! हम क्यों भागें? हम यहां पहले से थे। रोशनी पर क्या सिर्फ छिपकली का अधिकार है, हमारा नहीं? कब तक इस तरह डर के जिएंगे। "         पहला पतंगा उसकी बात से कुछ परेशान हुआ- " भाई, तुम क्या बेकार की बात कर रहे हो। हम आखिर क्या कर लेंगे! जहां जीतने की संभावना नहीं, वहां व्यर्थ में जान गवाने का क्या लाभ। हम कहीं और रोशनी ढूंढ लेंगे, अभी चलो यहां से।"         दूसरा पतंगा अब तैश में आ गया- " तुम्हारे जैसे कायरों की वजह से, हमारी यह हालत है, पंख होते हुए भी हम एक रेंगने वाले जीव से डर कर भागने को मजबूर हैं। शर्म आनी चाहिए तुम्हें। मैं अब यह सब नहीं सह सकता। किसी न किसी को तो आवाज उठानी होगी। मैं कहीं...