बीत जाना अभी शेष है...
.... नहीं ... कुछ नहीं ... बस ऐसे ही ... मुझे तो याद भी नहीं क्या कह रही थी! ये याद है कि कुछ था जो कह देना बहुत जरूरी था... मगर क्या? किससे? ये सब याद नहीं। बार- बार फोन उठाती हूं, कांटेक्ट लिस्ट स्क्रोल करती हूं... फिर फोन वापस रख देती हूं। बात किसी की ओर मुखातिब नहीं । बस बात थी। मुझे ठीक ठीक पता नहीं मुझे क्या कहना है, मगर एक बात मन में अटकी पड़ी है... एक पूरी बात भी नहीं ... कहने का कोई संदर्भ भी नहीं है! शायद ये कि__ मेरी यात्रा बेहद थकान भरी रही । मुझे एहसास था कि व्यक्ति का जीवन, उसकी चेतना पर, उसके व्यक्तित्व पर, उसकी हथेलियों पर अपना निशान छोड़ता है। आज अपनी हथेलियों को गौर से देखते हुए लगा जैसे ये मैं नहीं। जैसे मैंने किसी अजनबी का जीवन पहन लिया है ! ये व्यक्तित्व ... ये 33-34 वर्ष की महिला .... जिसकी कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं ! जिसकी उँगलियों पर स्याही के निशान की जगह चाकू के छोटे-छोटे-छोटे-छोटे सैकड़ों कट्स... जिनपर सब्जियों की छिलकों की कालिख भीतर तक समा गई है, किताबों के पन्नों की शांत स्थिर भीनी सुगंध की जगह जिसका...