वक्त का दरवाज़ा.. खोल सकते हो??

 एक वक्त के बाद, सपने मुश्किल से ही आते हैं आंखों में। नींद का रास्ता देखती आंखों में, बार-बार पलट कर आता रहता है वो वक्त जो गुजर सकता था, अगर सब वैसा ही होता, जैसा होना चाहिए था... मगर जो हुआ नहीं, जो कहा नहीं, जो किया नहीं, जो घटा नहीं... 

      और जो घट रहा है... वो किसी बही खाते में दर्ज हो रहा है, जिसका हिसाब होगा किसी दिन, जब वो गुजर जाएगा वक्त के दरवाजे की चौखट लांघ कर। 


     क्या तुम खोल सकते हो वक्त का दरवाजा?? 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कहानी....सच... और चाँद का बौना पेड़

व्यक्ति को परिभाषाओं में बांधना छोड़ दो !

पुरानी दीवार पर लटका एक बल्ब बल्ब...