अब मैं नास्तिक नहीं, वो पहले की बात थी।

           अब मैं नास्तिक नहीं, वो तो पहले की बात थी, जब मुझे पता था दो और दो चार होते हैं, गेंद ऊपर से नीचे गिरती है, बरसात के बाद ठंड आती है, जीवन और मृत्यु जैविक प्रक्रिया है, और तुम्हारा मिलना दुनिया की सबसे सुंदर घटना होगी। 

       अब मुझे पता नहीं..बरसात के बाद क्या होना है... अब गेंद हवा में कुछ देर टंगी भी रहे तो क्या, दो और दो कुछ होते भी हैं या नहीं! इस वृहत् शून्य में शब्द का निनाद, रस, गंध, रूप, स्पर्श... जीवन ही तो फूट पड़ता है शून्य से। मृत्यु है ही कहां ! और तुम .... सचमुच मिल गए हो क्या !! 

     अब जहां देखूं चमत्कार ही नजर आता है। एक क्षण के बाद दूसरे क्षण का घटना एक चमत्कार ही तो है। बारीक से अदृश्य धागे पर नट का सा संतुलन बनाए संसार का घटते रहना, बार बार ... लगातार.. आश्चर्य ही तो है! जीवन, तिस पर मेरा जीवन, मेरे जीवन में तुम... कैसा दुर्लभ संयोग ! इस संयोग पर मेरा अधिकार कितना क्षीण, मेरा अहंकार कितना विशाल ! इस अहंकार का टूटना कितना अनिवार्य है तुम तक पहुंचने के लिए!  

      तुम सचमुच मिल गए हो क्या ? 

      

Comments

  1. आस्तिक हो जाने के बाद भी संदेह की संभावना रहती है क्या?

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