व्यक्ति को परिभाषाओं में बांधना छोड़ दो !

"वामपंथी" !! ...क्योकि मैं पूजा नहीं करती ? क्योकि मैं तुम्हारी भीड़ से उलट चलती हूँ ?...

.             नहीं पागल !  किसी भी धर्म, संस्था या सिद्धांत से ज्यादा मुझे वो वस्तुएं प्रिय हैं जिनसे घिरे हुए मेरा वक्त बीतता है। संभव है तुम्हें मेरी बात ठीक न लगे, छिछली लगे ! लेकिन वस्तुओं में मैंने वो गर्माहट ढूंढी है, जो अमूमन रिश्तों में पाई जाती है!  बहुत लंबा वक्त अकेले बिताया है, और उस लंबे वक़्त में वस्तुओं ने मुझे संभाला है, सहारा दिया है, हंसाया है, धीरज बंधाया है... तुम नहीं थे !! मेरा तकिया था .. जिसे गले लगा कर मैं घंटो रोई हूं... जिसके सीने में चेहरा छुपाए सिसकियां थमने से पहले ही सो गई थी.. मेरा लैपटॉप था, उदास होने पर जिसकी और हाथ बढ़ाया है.. और वो मुझे घंटो फुसलाता रहा.. मेरा एक्रेलिक रंगों का डब्बा मुझे पुकार कर अपने पास बिठा लेता है जब अनमनी सी कुछ सोच रही होती हूं.. मेरा नीला सोनी स्पीकर मुझे अकेलापन महसूस नहीं होने देता... शम्मी कपूर के गानों पर अकेले नाचते झूमते जब थक जाती हूं.. फिर अपने तकिए कि गोद में चली जाती हूं, दीवार पर औंधे पड़े पांडा का स्टिकर मुझे देखकर हंसता है.. कहता है, थक गई!! मैं मुस्कुराती हूं... मेरा एयर कंडीशनर भी मेरे जैसा पागल है, अपना काम तो करता जाता है, लेकिन साथ ही साथ रोता रहता है बेवजह... सुबह फर्श गीली होती है उसके आंसुओं से.. मगर मुझे कोई तकलीफ़ होने नहीं देता, मैं सुकून से सो जाती हूं .. बशर्ते नींद आ जाए.. और अगर न आई, तो मेरा मोबाइल जगजीत सिंह और गुलज़ार को बुला लाता है। अभी चूल्हा ज़रा रूठा हुआ सा है, भक्कक से बुझ जाता है जलते जलते... मैं मना लूंगी.. तुम्हारी तरह ज़िद्दी नहीं है।

       अब क्या ? "भौतिकवादी" ?

मैं चाहती हूँ मेरे जीवन और मेरे शरीर से जुड़े सभी निर्णय सिर्फ मेरे हों।  मैं स्त्री से प्रेम करूँ या पुरुष से, अविवाहित माँ रहूं या माँ होना ही न चाहूँ...

        "नारीवादी" ?? "असामाजिक " ??

मुझे लगता है कुछ व्यक्ति दूसरों से बेहतर होते हैं, मुझे लगता है पैसे क्षमता और मेहनत से कमाए जाते हैं और मुझे लगता है मेरे पैसों पर 'सबका ' अधिकार नहीं है।

       अब ? सामंतवादी? दक्षिणपंथी ??
 

तुम्हारी ये "वामपंथ " से "दक्षिणपंथ " की सैद्धांतिक परिक्रमा किस काम की है ! वो हर व्यक्ति जो तुम्हारी बात से इत्तेफाक नहीं रखता.. "वामपंथी" या "दक्षिणपंथी" नहीं होता... "व्यक्तिवादी", "अस्तित्ववादी", "सुखवादी", "सामंतवादी", "नारीवादी" ... या हर तरह के "वाद" से पूर्णतः विमुख भी हो सकता है ! क्यों न ऐसा हो, तुम व्यक्ति को परिभाषाओं में बांधना छोड़ दो ! फिर शायद तुम्हें निराशा न हो !!

Comments

  1. सभी वादों के पार ,सत्य की तरह ।
    Grand thinking.

    ReplyDelete
  2. Fantastic , one of the best to come from your pen �� �� Thanks for sharing it .

    ReplyDelete
  3. जग मुझपे लगाए पाबंदी, मैं हूँ ही नहीं इस दुनियाँ की.....

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

कहानी....सच... और चाँद का बौना पेड़

घोड़ा छनक्क से टूट गया...