मुझे अब "स्त्री " बने रहना स्वीकार नहीं
सब बातें कही नहीं जातीं... कुछ बातें छुपी होती हैं... प्रकट, मगर सुन्दर शब्दों के बीच छुपी हुई। जैसे यह कि बेटियां सन्तान होने का अधिकार नहीं रखतीं। क्योंकि वो स्त्री हैं, उनसे अपेक्षित नहीं है कि वे अपने अभिभावकों के प्रति उत्तरदायित्व का अनुभव करें... अपने सहोदर भाई बहनों के प्रति स्नेह वस्तुतः एक विकृति है। विवाह के परिणामस्वरूप उन्हें नए अभिभावक दिए जाते हैं... जिनके प्रति रातोंरात चामत्कारिक रूप से उन्हें अपनी 25-30 वर्षों की भावना स्थानांतरित कर देनी होगी ... ऐसा कर सकने में असमर्थ स्त्रियां तिरस्कार की दृष्टि से देखी जाती हैं।
क्योंकि वे बेटियाँ हैं ... वे संतान होने का अधिकार नहीं रखतीं। ज़ाहिर है, बेटों के साथ ऐसी बाध्यता नहीं है। उन्हें विवाह के मूल्य स्वरूप अभिभावक नहीं बदलने होते।
मैं सुनी सुनाई बात नहीं कर रही... ये तो सब जानते हैं...समाज में स्वीकृत भी है.. पति की कामना में सदियों से स्त्रियां माताएँ बदलती आई हैं.. उसी समाज में.."यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते..." ।
मगर इस बात को कहना नहीं होता... इससे स्त्रियों का देवत्व धूमिल होता है।
अब भोर होने को है। 3:30.. 3:32.... 3: 36... बस कुछ देर में नया दिन शुरू हो जाएगा... उन्हीं पुरानी बातों के साथ.. जिन्हें बचपन से कितने ही उपन्यासों में पढ़ा, मगर जो पीछा नही छोड़तीं। मैं रूढ़ियाँ तोड़ भी दूँ...फिर भी सब वही बना रहता है... जैसे बहुत मोटी काई है.. जिसे कब से कुरेद रही हूं.. मगर साफ़ नहीं होती.. तुम्हें भी हाथ लगाना होगा.. तुम "पुरुष " नहीं बने रह सकते... मुझे अब "स्त्री " बने रहना स्वीकार नहीं।
Real lines with true feelings & sentiments.
ReplyDeleteBhut Accha aur bilkul sahi vyakhya ki hai Aapne Di..
ReplyDeleteThankyou
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